
कल से बाबा मणिराम के दरबार में लगेगा भक्तों का रेला


बिहारशरीफ : बाबा मणिराम अखाड़ा स्थल पर आषाढ़ गुरु पूर्णिमा पर आज तीन जुलाई से सात दिवसीय मेला लगेगा। बिहार के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाने पहुंचेंगे। इससे पहले रविवार से 24 घंटे का अखंड कीर्तन प्रारंभ होगा। परंपरा के अनुसार पुलिस प्रशासन के अधिकारी सबसे पहले बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाएंगे। इसी के साथ मेले की शुरुआत होगी। हालांकि, इसबार शहर में गाजे-बाजे के साथ लंगोट जुलूस नहीं निकलेगा। बाबा के दरबार में नारायणी भोजन की परंपरा अनूठी है। लंगोट मेला शुरू होने से पहले खिचड़ी, पापड़, चोखा, अचार का प्रसाद श्रद्धालुओं को ग्रहण कराया जाता है। इसमें सभी समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। मेले में आने वाले श्रद्वालुओं के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के झूले लगाये गये हैं। महिलाओं के लिए श्रृंगार की दुकानें सज चुकी हैं। मिठाई, गोलपप्पे, चाट-पकौड़े भी मेले में मिलेंगे।
श्रद्धालुओं के लिए बेहतर इंतजाम:
बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के सचिव अमरकांत भारती बताते हैं कि अखाड़ा न्यास समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए बेहतर इंतजाम किये गये हैं। मनोकामना मंदिर को आकर्षक लुक दिया गया है। मंदिर में एक और दरवाजा खोला गया है। इससे भक्तों को आने-जाने में सहूलियत होगी। 24 घंटे निर्बाध बिजली मिलेगी। स्वास्थ्य शिविर लगाया जाएगा। उमड़ने वाली भीड़ पर कैमरे से नजर रखी जाएगी। वे बताते हैं कि बाबा की कृपा इतनी कि उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। सच्चे मन से मांगी गयी मुराद जरूर पूरी होत है।
1952 में लंगोट मेले की हुई थी शुरुआत:
6 जुलाई 1952 में बाबा के समाधि स्थल पर लंगोट मेले की शुरुआत हुई थी। इसके पहले रामनवमी के मौके पर श्रद्धालु बाबा की समाधि पर पूजा-अर्चना करने आते थे। उन्होंने बताया कि उस वक्त के उत्पाद निरीक्षक कपिलदेव प्रसाद के प्रयास से मेला शुरु हुआ था। तब से हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से सात दिवसीय मेला यहां लगता है। कहा जाता है कि कपिलदेव बाबू को पांच पुत्रियां थीं। बाबा की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी।
1238 में बिहारशरीफ आये थे बाबा:
बाबा के बारे में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। अखाड़ा न्यास समिति के सचिव बताते है कि श्रीश्री 108 श्री बाबा मणिराम का आगमन 1238 ई. में हुआ। वे अयोध्या से चलकर यहां आएं थे। बाबा ने शहर के दक्षिणी छोर पर पंचाने नदी के पिस्ता घाट को अपना पूजा स्थल बनाया था। वर्तमान में यही स्थल ‘अखाड़ा पर’ के नाम से प्रसिद्ध है। ज्ञान की प्राप्ति और क्षेत्र की शांति के लिए बाबा घनघोर जंगल में रहकर मां भगवती की पूजा-अर्चना करने लगे। लोगों को कुश्ती भी सिखाते थे।
ली थी जीवित समाधि:
मान्यता है कि वर्ष 1300 में बाबा जगत से विदा हो गये। वे जीवित समाधि ली थी। कालांतर में उनके अनुयायी बाबा के समाधि स्थल पर मंदिर बनाकर पूजा करने लगे। बाबा की समाधि के बगल में उनके चार शिष्यों की भी समाधियां हैं। इनमें अयोध्या निवासी राजा प्रहलाद सिंह व वीरभद्र सिंह तथा बिहारशरीफ निवासी कल्लड़ मोदी और गूही खलिफा की समाधि है।

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